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Shrutratn Shrut Bhavan : पूज्य गणिवर श्री वैराग्यरतिवजयजी महाराज साहब एक प्रख्यात प्राच्यविद्, विद्वान, लेखक, संपादक और वक्ता हैं। उनकी अद्वितीय विद्वता और योगदान ने उन्हें जैन परंपरा और भारतीय ज्ञानसंपदा के संरक्षण, संवर्धन और प्रसार में एक प्रमुख हस्ती बना दिया है।

भाषा और लिपि ज्ञान

पूज्य गणिवर श्री वैराग्यरतिवजयजी म.सा. को अनेक भाषाओं का गहन ज्ञान है, जिनमें संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, मरुगुज्जर, पाली, हिंदी, मराठी, अंग्रेजी और गुजराती शामिल हैं। इसके अलावा, वे प्राचीन लिपियों के भी गहन ज्ञाता हैं, जिनमें सम्राट अशोककालीन ब्राह्मी, कुटिल, शारदा, ग्रंथ और प्राचीन देवनागरी लिपियां शामिल हैं।

विविध ज्ञान और शिक्षाएं

गणिवर श्री वैराग्यरतिवजयजी ने दर्शनशास्त्र, साहित्य, व्याकरण, इतिहास, भाषाशास्त्र, पूजन विधि और ज्योतिष जैसे विविध क्षेत्रों में महारत हासिल की है। इस ज्ञान को उन्होंने ना केवल स्वयं के अध्ययन तक सीमित रखा, बल्कि अनेक विद्यार्थियों को भी इस क्षेत्र में प्रशिक्षित किया है।

कार्य और योगदान : Shrutratn Shrut Bhavan

उन्होंने प्राचीन लिपि में लिखे हुए 80 से अधिक ग्रंथों का संपादन किया है। इसके अतिरिक्त, प्राचीन लिपि, भाषा, तत्वज्ञान और संपादनकला के 30 से अधिक विद्यार्थियों को प्रशिक्षित किया है।

गणिवर श्री वैराग्यरतिवजयजी ने पुणे में ‘श्रुतभवन‘ नामक संस्था की स्थापना की, जो प्राचीन लिपि में लिखे हुए ग्रंथों के सूचीकरण, संग्रह, एवं संपादन के क्षेत्र में कार्य करती है। जैन परंपरा में अनेक रचित ग्रंथों एवं ग्रंथकारों की विस्तृत जानकारी का निर्माण भी उनके द्वारा सर्वप्रथम किया गया।

युवाओं को प्राच्यविद्या में प्रेरित करना

पिछले 11 वर्षों से श्रुतभवन संशोधन केंद्र में प्राचीन शास्त्रों के हस्तलिखित प्रतियों के आधार पर संशोधन और प्रकाशन का कार्य चल रहा है। दुनियाभर के 92 हस्तप्रत भंडारों के 1,50,000 प्रतियों का डिजिटलीकरण हो चुका है, जिसमें 82 लाख पत्र शामिल हैं। इसके अलावा 45 हस्तप्रत भंडारों के 50 से अधिक सूचीपत्र का निर्माण हुआ है। 30 से अधिक युवा विद्यार्थियों को इस प्राच्यविद्या के क्षेत्र में तैयार किया। वे प्राच्यविद्या के क्षेत्र में युवाओं को जोड़ने एवं उनमें रुचि उत्पन्न करने का महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं।

ओजस्वी वक्ता शैली और समाजिक जागरूकता

अपनी ओजस्वी वक्ता शैली से वे समाज को वर्तमान परिस्थितियों से परिचित कराते हैं। भारत की शिक्षा नीति, भारत के प्राचीन विद्यापीठ, प्राचीन लिपियां, शिलालेख, प्राचीन हस्तलिखित, हस्तलिखितों का इतिहास और उनके संरक्षण पर अनेक शोधपरक लेख लिखे हैं।

प्राचीन ज्ञानसंपदा का संरक्षण : Shrutratn Shrut Bhavan

गणिवर श्री वैराग्यरतिवजयजी महाराज साहब का जीवन भारतीय प्राचीन ज्ञानसंपदा के संरक्षण, संवर्धन एवं उसे आने वाली पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए समर्पित रहा है। उन्होंने ‘लोकप्रकाश’ नामक जैन परंपरा के सर्वमान्य विज्ञानकोश ग्रंथ की सर्वप्रथम चिकित्सित सम्पादित आवृत्ति का निर्माण किया है।

पूज्य गणिवर श्री वैराग्यरतिवजयजी म.सा. ने अपने जीवन में भारतीय प्राचीन ज्ञानसंपदा के संरक्षण, संवर्धन और प्रसार के लिए अनेक कार्य किए हैं। उनके योगदान को देखते हुए, उन्हें विक्रम संवत 2077, ईसवी सन् 2020 में पुणे के हाईड पार्क जैन संघ ने श्रुतरत्न की उपाधि प्रदान की। 2024 में जितो पुणे चैप्टर द्वारा श्रुतभवन संशोधन केंद्र और श्रुतदीप रिसर्च फाउंडेशन को ज्ञान के क्षेत्र में सर्वोत्तम कार्य के लिए सम्मानित किया गया।

 उनकी प्रेरणा और मार्गदर्शन से ‘श्रुतभवन संशोधन केंद्र‘ और ‘श्रुतदीप रिसर्च फाउंडेशन’ की स्थापना हुई, जो प्राचीन शास्त्रों के हस्तलिखित प्रतियों के आधार पर संशोधन और प्रकाशन का कार्य कर रही हैं।

जैन शिक्षा और अनुसंधान संस्थान केंद्र : श्रुत वाटिका

श्रुतभवन के पायलट प्रोजेक्ट की सफलता के बाद, पुणे जल्द ही पूरी तरह से समर्पित जैन शिक्षा और अनुसंधान संस्थान वाला पहला शहर बनने जा रहा है। इस संस्थान में प्राचीन जैन पांडुलिपियों के अध्ययन के साथ-साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी का मेल बिठाया जाएगा। इसके अलावा, यहां एक विशिष्ट संग्रहालय भी होगा, जिसमें दुर्लभ पांडुलिपियों का संग्रह प्रदर्शित किया जाएगा। संस्थान की इमारतें पूरी तरह से प्राकृतिक निर्माण सामग्री जैसे पत्थर, मिट्टी, लकड़ी, बांस और ताड़पत्र आदि से बनाई जाएंगी, जिससे एक शांत और ध्यान केंद्रित करने के लिए अनुकूल वातावरण का निर्माण हो सके।

गणिवर श्री वैराग्यरतिवजयजी म.सा. का जीवन और कार्य न केवल जैन समुदाय के लिए बल्कि सम्पूर्ण भारतीय समाज के लिए प्रेरणास्रोत है। उनका संपूर्ण जीवन भारतीय प्राचीन ज्ञानसंपदा के संरक्षण और संवर्धन के प्रति समर्पित रहा है, जिससे आने वाली पीढ़ियों को भी लाभ होगा।

श्रुत-संयम वधामणा : Shrutratn Shrut Bhavan

26 मई 2024 को ४० वे दीक्षा दिवस के अवसर पर ‘श्रुत-संयम वधामणा’ के पावन प्रसंग पर पूज्य गुरुदेव के 100 लेखों के 7 पुस्तकों का संग्रह ‘श्रुतवाटिका’ प्रकाशित किया, जो हमारे परम उपकारी गुरुभगवंतों के संयमजीवन और श्रुतसाधना की अनुमोदना के लिए समर्पित है.

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